स्वास्थ्य विभाग निविदा विवाद: उपायुक्त पर मनमानी का आरोप/Health Department Tender Dispute: Deputy Commissioner accused of arbitrariness #Bokaro#Jharkhand

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स्वास्थ्य विभाग निविदा विवाद: उपायुक्त पर मनमानी का आरोप

बोकारो: झारखंड कॉन्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन द्वारा जिले के एक निजी होटल में सोमवार को एक विशेष प्रेसवार्ता आयोजित की गई। इसका उद्देश्य जिले में स्वास्थ्य विभाग की निविदा प्रक्रिया में अनियमितताओं को उजागर करना था। प्रेसवार्ता की अध्यक्षता एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रमोद कुमार ने की, जिसमें उन्होंने उपायुक्त पर गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना था कि स्वास्थ्य विभाग की निविदा प्रक्रिया को मनमाने तरीके से संचालित किया जा रहा है, जिससे कुछ खास एजेंसियों को अनुचित लाभ पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है।

निविदा प्रक्रिया में अनियमितताओं का आरोप
एसोसिएशन के सदस्यों ने जिले के सिविल सर्जन से मुलाकात की और निविदा प्रक्रिया की सभी शर्तों की जानकारी चाही। सिविल सर्जन ने बताया कि निविदा की शर्तें उपायुक्त द्वारा निर्धारित की गई हैं और उन्हें इस संबंध में विशेष जानकारी नहीं है। इसके बाद एसोसिएशन के सदस्य उपायुक्त कार्यालय पहुंचे, लेकिन उन्हें बताया गया कि उपायुक्त क्षेत्र भ्रमण पर निकली हैं। इस पर एसोसिएशन ने प्रेसवार्ता कर यह आरोप लगाया कि निविदा प्रक्रिया किसी विशेष एजेंसी को लाभ पहुंचाने के लिए बनाई गई है।

निविदा प्रक्रिया में मनमाने नियम और शर्तें
प्रमोद कुमार ने कहा कि निविदा की शर्तों को देखने से स्पष्ट होता है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह से पक्षपातपूर्ण है। उन्होंने बताया कि निविदा को अत्यंत अल्प अवधि में प्रकाशित किया गया, जिसमें महज दस दिनों की समय सीमा दी गई, जबकि इस अवधि में पांच दिन होली पर्व और एक दिन रविवार का अवकाश शामिल है। इससे अधिकांश एजेंसियों को निविदा में भाग लेने का अवसर नहीं मिल पाया।

उन्होंने यह भी बताया कि एजेंसी के चयन हेतु जिस मानक को आधार बनाया गया है, वह बेहद संदेहास्पद है। निविदा प्रक्रिया में 50 अंकों का निर्धारण कार्य प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है, जो अब तक किसी भी सरकारी निविदा में नहीं देखा गया है। इस तरह की शर्तें दर्शाती हैं कि समिति अपनी मर्जी से किसी भी एजेंसी को कार्य आवंटित कर सकती है।

स्वास्थ्य विभाग के नियमों की अनदेखी
स्वास्थ्य विभाग, झारखंड सरकार ने कई वर्ष पूर्व एक मॉडल निविदा दस्तावेज सभी जिलों को उपलब्ध कराया था, जिसमें स्पष्ट निर्देश दिया गया था कि स्वास्थ्य विभाग में मेनपावर आउटसोर्सिंग की निविदा केवल ऑनलाइन प्रक्रिया के माध्यम से ही संपन्न कराई जाएगी। इसके बावजूद, बोकारो जिले की उपायुक्त ने इस निर्देश की अवहेलना करते हुए अपने स्वनिर्मित निविदा प्रपत्र के आधार पर ऑफलाइन निविदा जारी करने की तैयारी कर ली।

एसोसिएशन का कहना है कि जिले में स्वास्थ्य विभाग से संबंधित निविदा प्रक्रिया का पूर्ण अधिकार सिविल सर्जन को प्राप्त है, लेकिन उपायुक्त ने अपने पास ही संपूर्ण अधिकार सुरक्षित रख लिया है। यह सीधे तौर पर विभागीय सचिव के आदेशों की अवहेलना और सरकार के निर्देशों की अनदेखी है।

एसोसिएशन की शिकायत और आगामी कार्ययोजना
एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रमोद कुमार ने बताया कि उपायुक्त से मिलने के लिए 12 मार्च को ईमेल के माध्यम से समय मांगा गया था, लेकिन इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई। इसी कारण एसोसिएशन ने प्रेसवार्ता कर इस अनियमितता को उजागर किया।

उन्होंने बताया कि एसोसिएशन के प्रतिनिधि मंगलवार को राज्य के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव से मुलाकात कर पूरी स्थिति से अवगत कराएंगे। साथ ही, वे मुख्यमंत्री को भी इस बारे में सूचित करेंगे कि कैसे जिले की उपायुक्त ने विभागीय सचिव के आदेशों को नजरअंदाज कर मनमाने तरीके से काम किया है। प्रमोद कुमार ने आशंका जताई कि यदि ऐसी घटनाएं चलती रहीं, तो इससे गलत परंपरा की शुरुआत होगी, जहां उपायुक्त बिना किसी जवाबदेही के कार्य कर सकेंगे।

इतिहास में सरकारी निविदाओं में अनियमितता के मामले
सरकारी निविदाओं में अनियमितता का यह कोई पहला मामला नहीं है। भारत में कई बार सरकारी टेंडर प्रक्रियाओं में धांधली के मामले सामने आते रहे हैं।

1. बोफोर्स घोटाला (1980 के दशक)
भारत में रक्षा सौदों में हुई धांधली का सबसे बड़ा उदाहरण बोफोर्स घोटाला है। इसमें स्वीडन की कंपनी बोफोर्स को लाभ पहुंचाने के लिए नियमों को ताक पर रखा गया था।

2. कोयला घोटाला (2012)
सरकारी निविदाओं में मनमाने तरीके से कोयला ब्लॉक आवंटन किए गए, जिससे सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ।

3. कॉमनवेल्थ घोटाला (2010)
दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान निविदाओं में अनियमितता के चलते सरकारी धन का भारी दुरुपयोग किया गया।

4. स्वास्थ्य विभाग घोटाले (विभिन्न राज्य)
स्वास्थ्य विभाग में टेंडर और निविदाओं में अनियमितता कई बार सामने आई है। झारखंड सहित कई राज्यों में अस्पतालों में आउटसोर्सिंग सेवाओं के लिए टेंडर प्रक्रिया में अनियमितता के आरोप लगते रहे हैं।

संभावित परिणाम और आगे की कार्रवाई
यदि उपायुक्त द्वारा की जा रही इस निविदा प्रक्रिया में अनियमितता साबित होती है, तो यह प्रशासन के लिए एक गंभीर मुद्दा बन सकता है। इससे सरकार की नीतियों की पारदर्शिता पर सवाल उठ सकते हैं।

एसोसिएशन ने मांग की है कि—
पूरी निविदा प्रक्रिया को निरस्त कर दोबारा ऑनलाइन निविदा जारी की जाए।
स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव इस मामले में हस्तक्षेप कर उपायुक्त के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करें।
निविदा प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाया जाए, ताकि सभी इच्छुक एजेंसियां इसमें भाग ले सकें।
संविधानिक नियमों के तहत जिला स्तर पर निविदा की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र कमेटी बनाई जाए।
बोकारो में स्वास्थ्य विभाग की निविदा प्रक्रिया में कथित अनियमितताओं को लेकर झारखंड कॉन्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन द्वारा उठाए गए मुद्दे गंभीर हैं। उपायुक्त द्वारा निविदा प्रक्रिया को अपने नियंत्रण में लेना और विभागीय सचिव के आदेशों की अवहेलना करना प्रशासनिक नियमों का उल्लंघन हो सकता है। यदि इस मामले में राज्य सरकार जल्द हस्तक्षेप नहीं करती है, तो इससे भविष्य में सरकारी टेंडरों में मनमानी और पक्षपात की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिल सकता है।
सरकार को इस मामले की निष्पक्ष जांच करानी चाहिए, ताकि निविदा प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके और सरकारी टेंडर प्रक्रियाओं में निष्पक्षता बनी रहे।