यज्ञशाला में चतुर्वेदी ब्राह्मणों द्वारा दिव्य पंचांग एवं देवी पूजन का भव्य आयोजन
बोकारो। वैदिक संस्कृति के दिव्य आलोक में चतुर्वेदी ब्राह्मण समाज द्वारा यज्ञशाला में पंचांग पूजा, देवी पूजा, वास्तु पूजा, द्वारपाल पूजा, क्षेत्रपाल पूजा तथा नवग्रह पूजा का पावन अनुष्ठान सम्पन्न हुआ। इस आयोजन में शास्त्रों में वर्णित विधानों का पूर्णतः पालन किया गया, जिससे समूचा वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से आलोकित हो उठा। पूजन के पश्चात हवन का शुभारंभ हुआ, जिसमें प्रख्यात विद्वानों और यजमानों ने आहुति अर्पित कर धर्म, संस्कृति और लोकमंगल की कामना की।
वैदिक ऋचाओं से गूंज उठा यज्ञशाला
प्रातःकाल शुभ मुहूर्त में वेदज्ञ आचार्यों के सान्निध्य में पंचांग पूजन का आरंभ हुआ। वैदिक ऋचाओं के उच्चारण, मंत्रों की दिव्य ध्वनि और शंख-घंटा-घड़ियाल की गूंज से समस्त वातावरण भक्तिमय हो उठा। वेदपाठी ब्राह्मणों ने विधिपूर्वक देवी शक्ति का आह्वान करते हुए नवग्रहों, वास्तु देवता, क्षेत्रपाल, द्वारपाल एवं अन्य देव शक्तियों की अर्चना कर जीवन में शांति, सुख एवं समृद्धि का संकल्प लिया।
इस पावन अवसर पर देव मूर्ति डॉक्टर अनिल कुमार, दैवज्ञ डॉ. श्रीधर ओझा, कृष्णकांत त्रिपाठी, नितिन त्रिपाठी, पूनम त्रिपाठी, प्राची त्रिपाठी, विमल चंद्र, डॉ. परमानंद चंद्रवंशी सहित सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित रहे। काशी से पधारे विद्वान आचार्यों ने अपनी आध्यात्मिक उपस्थिति से इस आयोजन को और भी दिव्य बना दिया।
अग्निहोत्र में प्रवाहित हुई आस्था की पवित्र धारा
यज्ञाग्नि की प्रज्वलित ज्वालाओं के समक्ष श्रद्धालुओं ने विधिवत आहुति समर्पित की। वैदिक आचार्यों ने हवन की महत्ता बताते हुए कहा कि यज्ञ से पर्यावरण की शुद्धि होती है, नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। अग्नि देव के साक्षात सान्निध्य में समर्पित आहुतियों के साथ भक्तों ने अपने जीवन की समस्त विघ्न-बाधाओं के विनाश की प्रार्थना की।
शाम को देवी भागवत कथा की अमृत वर्षा
रात्रि 6:00 बजे से 9:30 बजे तक देवी भागवत कथा का दिव्य प्रवाह प्रारंभ हुआ। सुप्रसिद्ध दैवज्ञ डॉ. श्रीधर ओझा ने कथा के सजीव प्रसंगों के माध्यम से भक्तों को आत्मिक शांति एवं आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति कराई। उन्होंने देवी भागवत के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह ग्रंथ भक्तों को परम शक्ति की अनुभूति कराता है और जीवन में धर्म, भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य का संचार करता है। कथा के दौरान श्रद्धालु भक्तिरस में इतने विभोर हो गए कि पूरा वातावरण देवी महिमा के भक्तिपूर्ण जयकारों से गुंजायमान हो उठा।
महाप्रसाद के साथ भक्तों को मिला दिव्य आशीर्वाद
रात्रि बेला में यज्ञशाला में महाप्रसाद वितरण का आयोजन किया गया, जिसमें सैकड़ों भक्तों ने प्रसाद ग्रहण कर अपने जीवन को धन्य किया। दिव्यता से ओत-प्रोत इस आयोजन ने उपस्थित श्रद्धालुओं के हृदय को आध्यात्मिक शांति और संतोष से भर दिया।
धार्मिक चेतना के जागरण का संकल्प
इस पवित्र आयोजन से समूचा क्षेत्र भक्तिमय हो गया। आयोजकों ने इस अवसर पर संकल्प लिया कि ऐसे आध्यात्मिक कार्यक्रम भविष्य में भी नियमित रूप से आयोजित किए जाएंगे, जिससे धर्म, संस्कृति और सद्भाव का सतत जागरण बना रहे।
“यत्र यत्र रघुनाथ कीर्तनं, तत्र तत्र कृतमस्तकांजलिः” – जहां धर्म की गूंज होती है, वहां स्वयं देवताओं का वास होता है।
ऐसे ही दिव्य आयोजन समाज को आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर करते हैं और जीवन में सुख, शांति तथा मंगलमय ऊर्जा का संचार करते हैं।