डीसी बोकारो विजया जाधव नारायण राव ने अपने आवास पर रुद्राभिषेक पूजा का आयोजन किया भक्ति मय हुआ वातावरण/DC Bokaro Vijaya Jadhav Narayan Rao organized Rudrabhishek Puja at her residence #Bokaro DC#Jharkhand#Lord Shiva#rudravishek

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डीसी बोकारो विजया जाधव नारायण राव ने अपने आवास पर रुद्राभिषेक पूजा का आयोजन किया भक्ति मय हुआ वातावरण

यह अद्भुत और सौभाग्य का संयोग है जो 72 वर्षों के बाद इस सावन में आया है जहां देवों के देव महादेव की पूजा होती है। बोकारो डीसी आवास पर रविवार को रुद्राभिषेक पूजा का आयोजन किया गया इस पूजा में डीसी बोकारो विजया जाधव नारायण राव पूजन के लिए विराजमान थी इस अवसर पर पंडित गणों ने मंत्र उच्चारण कर पूरे विधि विधान के साथ पंडित सूरज पांडे यज्ञयाचार्य ने पूजा संपन्न कराया वृंदा धाम से आए पंडित गणो के मंत्र उच्चारण के कारण पूरा वातावरण भक्ति मय हो गया भगवान महादेव का दूध के द्वारा रुद्राभिषेक कराया गया इस अवसर पर सभी प्रशासनिक पदाधिकारी मौजूद रहे एवं पूजा अर्चना की।

बोकारो डीसी आवास पर रविवार को रुद्राभिषेक पूजा के बाद सभी उपस्थित सज्जनों और देवियों के बीच प्रसाद का वितरण किया गया उसके बाद सभी लोगों ने एक साथ महाप्रसाद के भोग का आनंद उठाया फिर सभी लोग अपने अपने निवास स्थान के लिए प्रस्थान कर गए। एक जिले के उपयुक्त के द्वारा इस कार्य को सावन मास में यह कार्य को करने का क्या अर्थ है ? इस बारे में पंडित सूरज पांडे ने विस्तार से बताया की 72 वर्षों के बाद आया इस सावन माह का क्या माहात्म्य है पेश है इस वार्तालाप के कुछ अंश। पंडितजी ने बताया की
ऐसा लगता है कि डीसी बोकारो विजया जाधव नारायण राव ने अपने निवास पर भगवान शिव के लिए प्रार्थना समारोह आयोजित करके एक गहन आध्यात्मिक और भक्तिमय माहौल बनाया है। इस तरह के आयोजन अक्सर शांति और सांप्रदायिक सद्भाव की भावना लाते हैं, जो लोगों को आस्था और भक्ति के साझा अनुभव में एक साथ लाते हैं। जब हमने पूछा की क्या इस आयोजन के बारे में कोई खास बात है जिसे आप जानना या चर्चा करना चाहेंगे?
तो उन्होंने कहा बोकारो के डिप्टी कमिश्नर (डीसी) विजया जाधव नारायण राव द्वारा सावन के महीने में की जाने वाली रुद्राभिषेक पूजा का गहरा सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है, खासकर हिंदू परंपराओं के संदर्भ में।
सावन (श्रावण) का महीना हिंदू धर्म में बेहद शुभ माना जाता है, खासकर भगवान शिव की पूजा के लिए। भक्तों का मानना ​​है कि इस महीने में शिव को समर्पित प्रार्थना और अनुष्ठान अधिक आध्यात्मिक लाभ देते हैं। कई लोग आशीर्वाद, सुरक्षा और समृद्धि पाने के लिए व्रत रखते हैं, पूजा करते हैं और भक्ति के कार्य करते हैं।
रुद्राभिषेक भगवान शिव की पूजा का एक शक्तिशाली और पूजनीय रूप है, जिसमें शिव लिंग पर जल, दूध, शहद और अन्य पवित्र पदार्थों जैसे विभिन्न प्रसादों से अभिषेक किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे व्यक्ति और समुदाय की भलाई के लिए शिव का आशीर्वाद मिलता है।

उपायुक्त की भूमिका

इस तरह की पूजा का आयोजन और उसमें भाग लेकर, उपायुक्त क्षेत्र की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपराओं के साथ जुड़ाव का प्रतीक हो सकते हैं। यह सद्भावना और जिले के लोगों की भलाई के प्रति प्रतिबद्धता का भी संकेत देता है। नेता अक्सर स्थानीय आबादी की भावनाओं के साथ तालमेल बिठाने और अपने शासन वाले जिले की समृद्धि और शांति के लिए ईश्वरीय आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए ऐसी गतिविधियों में शामिल होते हैं।

सामुदायिक बंधन

यह आयोजन संभवतः सांप्रदायिक सद्भाव और बंधन के अवसर के रूप में कार्य करता है। प्रसाद का वितरण और महाप्रसाद का सामूहिक आनंद एकता और साझा सांस्कृतिक मूल्यों पर जोर देता है, जिससे प्रशासन और समुदाय के बीच संबंध मजबूत होते हैं।

कुल मिलाकर, सावन के दौरान इस तरह का आयोजन परंपरा के प्रति सम्मान, सामुदायिक भावना को बढ़ावा देने का प्रयास और जिले के कल्याण के लिए प्रार्थना का प्रतीक है।

सावन (श्रावण) का महीना हिंदू परंपरा में विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा के लिए महत्वपूर्ण महत्व रखता है। हालांकि, 72 वर्षों के बाद सावन के विशेष महत्व का विशिष्ट उल्लेख संभवतः एक अद्वितीय ज्योतिषीय या कैलेंडर घटना को संदर्भित करता है।

सावन का महत्व
सावन को भगवान शिव को समर्पित सबसे पवित्र महीना माना जाता है। भक्तों का मानना ​​है कि इस समय के दौरान पूजा, विशेष रूप से रुद्राभिषेक, उपवास और प्रार्थना पाठ जैसे अनुष्ठानों के माध्यम से, दिव्य आशीर्वाद, शांति और समृद्धि लाता है।

सावन भारत में मानसून के मौसम के साथ मेल खाता है, जो उर्वरता, विकास और प्रचुरता का प्रतीक है। इस महीने को प्रकृति के कायाकल्प का जश्न मनाने और अच्छी फसल के लिए आशीर्वाद मांगने के समय के रूप में देखा जाता है।

यह दावा कि 72 वर्षों के बाद इस सावन का विशेष महत्व है, संभवतः एक दुर्लभ ज्योतिषीय संरेखण या एक विशिष्ट चंद्र चक्र से संबंधित है। यहाँ कुछ संभावनाएँ दी गई हैं:

अधिक मास (अतिरिक्त महीना)

कभी-कभी, हिंदू चंद्र कैलेंडर में “अधिक मास” या “पुरुषोत्तम मास” नामक एक अतिरिक्त महीना होता है, जो चंद्र कैलेंडर को सौर वर्ष के साथ संरेखित करने के लिए लगभग हर 2-3 साल में आता है। यदि सावन में ऐसा कोई अतिरिक्त महीना शामिल हो, तो इसे अत्यधिक शुभ माना जा सकता है।

सावन के दौरान ज्योतिषीय चार्ट में कुछ ग्रहों की स्थिति या विशेष योग (शुभ संयोजन) की उपस्थिति इस महीने को विशेष रूप से महत्वपूर्ण बना सकती है। ये संरेखण कई वर्षों तक नहीं हो सकते हैं, जिससे जीवन में एक बार मिलने वाला आध्यात्मिक अवसर बनता है।
कुछ मामलों में, सावन के दौरान कई त्योहारों या तिथियों (शुभ दिनों) का मिलन दुर्लभ और उल्लेखनीय हो सकता है। उदाहरण के लिए, श्रावण सोमवार (शिव को समर्पित सोमवार), नाग पंचमी और अन्य महत्वपूर्ण दिनों का संयोजन एक अनोखे पैटर्न में हो सकता है जो दशकों से नहीं देखा गया है।
माना जाता है कि ऐसी दुर्लभ घटनाएँ महीने के दौरान किए जाने वाले अनुष्ठानों की आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाती हैं। भक्त इसे आशीर्वाद लेने, दान-पुण्य करने और गहन आध्यात्मिक अभ्यासों में संलग्न होने का एक असाधारण अवसर मान सकते हैं।
यदि सावन की इस दुर्लभता के लिए कोई विशिष्ट ज्योतिषीय या कैलेंडर कारण है, तो यह इस महीने को भक्तों के लिए विशेष रूप से विशेष बना देगा, जिससे धार्मिक गतिविधियों में अधिक भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा। पंडितजी ने शिव शंभू के नाम का व्याख्यान करते हुए बताया की , भगवान शिव को अक्सर “शिव शंभू” के रूप में संदर्भित किया जाता है, जिसका अर्थ है उपकारक या वह जो सभी को आशीर्वाद और कल्याण प्रदान करता है। हिंदू धर्म में, शिव विनाश की शक्ति और करुणा की कृपा दोनों का प्रतीक हैं। एक उपकारक के रूप में उनकी भूमिका उनकी पूजा और भक्तों से प्राप्त होने वाली श्रद्धा का केंद्र है।
उन्होंने बताया की शिव को उपकारक क्यों माना जाता है क्योंकि बुराई का नाश करने वाला शिव ही है और इसलिए वो इस जगत में सर्वदा पूजनीय हैं और वो ही सबका कल्याण करते हैं।
पंडितजी ने आगे बताया डीसी बोकारो ने जो भावना व्यक्त की है, वह भगवान शिव को समर्पित सार्वभौमिक प्रार्थना से बहुत मिलती-जुलती है और हिंदू आध्यात्मिकता का सार दर्शाती है। यह प्रार्थना सभी प्राणियों के सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना है, जो भगवान शिव की दयालु प्रकृति से गहराई से मेल खाती है।

संबंधित मंत्र:
“सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत्।”
अनुवाद
सर्वे भवन्तु सुखिनः: सभी सुखी हों।
सर्वे सन्तु निरामयाः: सभी रोग मुक्त हों।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तुः सभी मंगल देखें।
मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत्: किसी को किसी भी तरह से कष्ट न हो।

इस मंत्र भगवान शिव से संबंध बताते हुए उन्होंने बताया की भगवान शिव, दयालु देवता के रूप में जो सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों तरह के आशीर्वाद प्रदान करते हैं, इस प्रार्थना का सार हैं। उनकी कृपा केवल उनके भक्तों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सभी जीवित प्राणियों तक फैली हुई है। शिव को अक्सर परम रक्षक और ब्रह्मांड की भलाई सुनिश्चित करने वाले के रूप में दर्शाया जाता है।

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