मधु-कैटभ प्रकट्य और वध की विस्तृत कथा/Detailed story of Madhu-Kaitabh appearance and killing#Bokaro#Jharkhand

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मधु-कैटभ प्रकट्य और वध की विस्तृत कथा

देवी भागवत पुराण में मधु और कैटभ नामक असुरों का प्रकट्य और उनके वध का विस्तार से वर्णन मिलता है। यह कथा सृष्टि की उत्पत्ति और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक मानी जाती है।

मधु और कैटभ का जन्म

जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी, चारों ओर केवल जल ही जल था। उस अनंत जलराशि के मध्य शेषशायी भगवान विष्णु योगनिद्रा में लीन थे। उनके कानों से निकले मैल से दो असुर उत्पन्न हुए, जिनका नाम मधु और कैटभ रखा गया। ये दोनों असुर अत्यंत बलशाली, पराक्रमी और अहंकारी थे।

वेदों की चोरी और ब्रह्मा जी संकट

जब मधु और कैटभ ने अपनी शक्ति बढ़ाई, तब उन्होंने सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा जी पर आक्रमण कर दिया। वेद, जो सृष्टि की रचना और संचालन के आधार हैं, उन्हें मधु-कैटभ ने चुरा लिया और पाताललोक में छिपा दिया। वेदों के बिना ब्रह्मा जी सृष्टि की रचना करने में असमर्थ हो गए और चारों ओर अंधकार और अराजकता फैल गई।

ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु की शरण ली और उनसे इस संकट को दूर करने की प्रार्थना की। परंतु उस समय भगवान विष्णु योगनिद्रा में थे। ब्रह्मा जी ने माता महामाया की स्तुति की और उनसे प्रार्थना की कि वे भगवान विष्णु की निद्रा को भंग करें।

भगवान विष्णु और मधु-कैटभ का युद्ध

माता महामाया की कृपा से भगवान विष्णु जागे और उन्होंने ब्रह्मा जी से संपूर्ण घटना सुनी। तब भगवान ने अपने चक्र का प्रयोग किया और मधु-कैटभ से युद्ध करने के लिए पाताललोक गए।

यह युद्ध पांच हजार वर्षों तक चला। मधु और कैटभ बहुत बलशाली थे, और वे अपनी शक्ति से बार-बार भगवान विष्णु को चुनौती दे रहे थे। माता महामाया की कृपा से भगवान विष्णु ने समझ लिया कि ये असुर अपने अहंकार के कारण स्वयं को अजेय मान रहे हैं।

असुरों का गर्व और वध

युद्ध के दौरान मधु और कैटभ ने देखा कि भगवान विष्णु उनसे पराजित नहीं हो रहे हैं। वे अपने बल पर अभिमान करने लगे और भगवान विष्णु से बोले—
“हे विष्णु! तुम हमसे प्रसन्न हो, इसलिए हम तुम्हें वरदान देते हैं। जो चाहो मांग लो!”

भगवान विष्णु उनकी इस मूर्खता को समझ गए। उन्होंने कहा—
“यदि तुम मुझे वरदान देना ही चाहते हो तो मुझे यह वर दो कि मैं तुम दोनों का वध कर सकूं।”

मधु और कैटभ अपने अहंकार में इतने अंधे हो चुके थे कि उन्होंने तुरंत यह वरदान दे दिया। परंतु जब उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ, तब तक देर हो चुकी थी।

भगवान विष्णु ने देखा कि वे दोनों असुर अपने बल के कारण पृथ्वी पर अवध्य (अजेय) हो चुके थे। तब भगवान ने उन्हें समुद्र की गोद में ले जाकर अपने चक्र से उनका संहार कर दिया।

इस कथा से सीख

मधु-कैटभ वध की कथा हमें यह सिखाती है कि—

  1. अहंकार का नाश निश्चित है – मधु और कैटभ अपने बल पर गर्व करने लगे थे, जिसके कारण उनका विनाश हुआ।
  2. सत्कर्म और ईश्वर भक्ति आवश्यक है – ब्रह्मा जी ने माता महामाया की आराधना की, जिससे भगवान विष्णु ने संकट का समाधान निकाला।
  3. अधर्म का अंत निश्चित है – वेदों की रक्षा और ब्रह्मा जी के कार्य को पुनः सुचारु करने के लिए भगवान विष्णु ने मधु-कैटभ का वध किया।

इस कथा का महत्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि जीवन के व्यवहारिक पक्ष से भी जुड़ा हुआ है। अहंकार का नाश निश्चित होता है, और जो सच्चे हृदय से ईश्वर की आराधना करता है, उसे अवश्य ही सफलता प्राप्त होती है।